जीवन के गुरु
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
जिसने ज्ञानांजन रुप शलाका से, अज्ञानरुपी अंधकार से अंधे हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरु को नमस्कार ।
यह श्लोक हमारे जीवन में गुरु की महिमा को बताता है। बिना गुरु के हम अज्ञान रुपी अंधकार में खो जाते हैं । गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। सिर्फ स्कूली शिक्षा देने वाले ही हमारे गुरु नहीं होते। इस जीवन को सुचारु रुप से चलाने के लिए हमने जिससे भी जो कुछ भी सीखा वह सभी हमारे गुरु हैं।
प्रथम गुरु माता-पिता
हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता हैं। वे हमारा पालन-पोषण करते हैं, हमें पहली बार बोलना, चलना तथा सांसारिक आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान जीवन में सबसे पहले है। प्रथम बार हाथ पकड़ कर चलना सिखाना हो अथवा साइकिल की कैरियर में पकड़कर साइकिल चलाना सिखाना हो यह पिता ही करते हैं। किसी भी व्यक्ति के जीवन में प्रथम संस्कार उसके घर से ही पड़ते हैं।
द्वितीय गुरु टीचर
माता पिता के गोद से निकलकर सांसारिक दुनिया में प्रथम साक्षात्कार बच्चे का स्कूल में होता है। स्कूल की टीचर उसकी मां भी होती है और गुरु भी। माता-पिता के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव टीचर का ही व्यक्ति का जीवन में होता है। कहते हैं गुरु भविष्य के प्रलय अथवा सृजन का रचयिता होता हैं। गुरु चाहे तो एक कुम्हार के भांति कच्ची अनगढ़ मिट्टी से सुंदर रचना रच सकता है।
तृतीय गुरु पुस्तकें
पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है। पुस्तकों के अध्ययन से ज्ञान की वृद्धि होती है और ज्ञान वृद्धि से सुख मिलता है । ज्ञान वृद्धि से मिलने वाली सुख की तुलना किसी भी सुख से नहीं की जा सकती । पुस्तक अध्ययन करने से हम सफल व्यक्ति बन सकते हैं। अनेक प्रकार की ज्ञानवर्धक पुस्तकें है जो हमें सफलता की ऊंचाई तक पहुंचाने में हमारी मदद करती हैं।
चतुर्थ गुरु मित्र
क्या मित्र गुरु हो सकते हैं? जी, बिल्कुल हो सकते हैं। जिनसे भी हम अच्छी चीज सीखते हैं वही हमारे गुरु है। जैसे सद्गुरु अज्ञानता को दूर करके ज्ञान के रास्ते में लेकर जाते हैं, उसी प्रकार अच्छे मित्र हमें सफलता के शिखर तक ले जाने में सहायक होते हैं।
पंचम गुरु प्रकृति
अगर हम ध्यान से देखें तो प्रकृति हमारी गुरु हैं। प्रकृति के पंचतत्व हमें सिखाते हैं कि जीवन में अनुशासित होना कितना आवश्यक है।
प्रथम तत्व जल
जल हमें सिखाती है कि सदैव गतिमान रहना जीवन में कैसी भी कठिनाई हो, कितनी भी मुश्किलें आए सदैव जल के समान कठिनाइयों को दूर करके आगे बढ़ते रहना।
द्वितीय तत्व वायु
वायु हमें वेग निर्धारित करना सिखाती है। जीवन में वेग प्रवाह के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। परंतु वेग निर्धारित होनी चाहिए। जिस प्रकार से मंद वायु मन को मोहित करती है परंतु वही वायु यदि आंधी और चक्रवात का रूप ले ले तो प्रलय लेकर आती है।
तृतीय तत्व पृथ्वी
पृथ्वी हमें डटे रहना सिखाती है। कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो धैर्य मत त्यागो। स्थिर रहना ही पृथ्वी का गुण है। अपने लक्ष्य और निर्णय पर स्थिर रहने का गुण व्यक्ति को सफल बनाता है।
चतुर्थ तत्व अग्नि
अग्नि हमें अपनी उर्जा की संयम के साथ उपयोग करने की शिक्षा देता है। अति उत्साह में यदि अधिक ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो वह विनाश करती है। जैसे जिस अग्नि का उपयोग भोजन बनाने के लिए होता है वही अग्नि यदि असंयमित हो जाए तो दावानल बन जाती है।
पंचम तत्व आकाश
जिस प्रकार से आकाश का कोई अंत नहीं। उसी प्रकार जीवन में संभावनाओं का कोई अंत नहीं है। यह सीख हमें आकाश से मिलती है आकाश का अर्थ है विस्तार।आकाश में विस्तार पाते हुए हम न भटके। हम अपने उद्देश्य को ना भूल कर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होते रहे।
प्रत्येक दिन एक नई सीख ले कर आता है। हर एक पल जिसमें हम कोई नई चीज सीखते हैं वह हमारे जीवन में वरदान है और हर एक छोटी चीज़ सिखाने वाला हमारा गुरु। चाहे हम वह एक छोटे से बच्चे से सीखें अथवा सड़क पर चलते हुए किसी व्यक्ति से। हमेशा सीखने की इच्छा रखने वाला इंसान ही सफल बनता है।
आप सभी को शिक्षक दिवस दिवस के अनेकों शुभकामनाएं।