मेरे कान्हा का जन्मदिन

कृष्ण जन्माष्टमी सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में मनाया जाता है। कृष्ण जितने प्रिय हमारे है उतने ही प्रिय शायद रूस, अमेरिका या ब्रिटेन के भक्तों में भी होंगे। हिन्दू कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। कह सकते है कि कृष्ण ग्लोबल भगवान है। कृष्ण ऐसे ही ग्लोबल भगवान नहीं है उन्होंने एक पुत्र, प्रेमी, बंधु, भाई, राजनितिक, दार्शनिक, कुटनीतिज्ञ और योद्धा के रूप में आदर्श प्रस्तुत किये है।
हर रूप में हमने उनके चमत्कार देखें हैं। “अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे”। श्रावण मास ( जुलाई या अगस्त) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने लीला दिखाना प्रारंभ कर दिया था। बचपन से कृष्ण के चमत्कारों की कथा सुनते हुए मैं बड़ी हुई थी। कह सकते है कि वो मेरे पसंदीदा सुपर हीरो थे। बचपन में हम जन्माष्टमी हम बहुत उत्साह से मनाते थे। शादी के बाद ससुराल में सिर्फ व्रत और पूजन होते देखा है, कहीं न कहीं मैं अपने बचपन के सुपर हीरो का जन्मदिन बहुत मिस करती थी। इस बार मैंने तय किया कि मैं अपने बच्चों के साथ उसी तरह जन्माष्टमी मनाऊंगी जैसे मेरे मायके में मनाती थी।
हम जन्माष्टमी में झांकी सजाते थे। जिस तरह से गणेश चतुर्थी में घर के एक कोने को सजा कर वहां गणेश जी को विराजमान करते हैं ठीक उसी तरह से जन्माष्टमी में झांकी सजाते हैं। कुछ पुराने खिलौने थे और कुछ मैं टेराकोटा के खिलौने खरीद लायी। जो कि कृष्ण जी की लीला को दर्शाती थी।
सबसे पहले तो जहां झांकी सजानी थी वहां सफाई की। हम एक तरफ पहाड़ी और उसमें से गिरते हुए झरने को दिखा रहे थे। कलर सैंड से जमीन में रंगोली बनाई। उस पर टेराकोटा के खिलौने रखे। सुंदर सी झांकी बनाने के बाद बीच में कृष्ण जी का झूला लगाकर उस पर बाल गोपाल को बैठाया। बच्चें मेरे साथ झांकी सजा रहे थे। मैं आश्चर्यचकित रह गई, हर समय गैजेट्स में लगे रहने वाले मेरे बच्चे इस बार सब भूल-भाल कर जन्माष्टमी की तैयारी कर रहे थे।
मेरे बेटे ने पूछा, “माँ कान्हा के नये कपड़े कहाँ है ?” तब तक मेरी सासू माँ कान्हा के कपड़े लेकर आ गयी। उन्होंने कहा,”अक्षय, आरव तुम्हें पता है कान्हा को पीले रंग के कपड़े बहुत पसंद हैं। इसलिए मैं उनके लिए ये पीले गोटे वाले कपड़े लेकर आयी हूँ। श्री कृष्ण को श्रृंगार बेहद पसंद है। इसलिए आओ हम प्यार से इनका श्रृंगार करें। कान्हा के गले, हाथों, पैरों और कमर में पहनाने के लिए मैं ये गहने लेकर आयी हूं। देखो, कान्हा के मुकुट में हमेशा मोरपंख लगा होता है क्योंकि मोरपंख इन्हें पसंद हैं। मुरली (बंसी) इनके हाथों में रहती है इसलिए इनका एक नाम मुरलीधर भी है।”
मैंने बच्चों को उनकी दादी के साथ कान्हा को सजाते देखा तो मैं कान्हा के लिए भोग बनाने चली गई। कान्हा की पसंदीदा खाना बनाना था। मेरे कृष्ण को मखाने की खीर, कलाकंद, तिल के लड्डू बहुत प्रिय है। घर पर ही मलाई से ताजी माखन निकाली। मैं साग काट रही थी कि पति आ गये, “ये क्या कान्हा को साग खिलाओगी?”
” हाँजी, आप शायद भूल गये कान्हा को साग बहुत पसंद हैं। इन्होंने दुर्योधन के घर के छप्पन भोग को छोड़कर विदुर जी के घर साग खाया था। छप्पन भोग में सबसे पहले भगवान को साग से नैवेद्य देते हैं।”
मैं भोग बनाकर आई तब तक मेरी सासू मां ने फूलों से माला बना ली थीं। चंदन, तुलसी के पत्ते, दुर्वा भी रख दिए थे। बच्चों ने झांकी सजाने की बात पूरी सोसायटी में बता दी थी तो शाम होते ही सब हमारे घर झांकी देखने आने लगें।
रात बारह बजे कृष्ण जी का जन्म हुआ था। हमने बारह बजने से पहले पूजा शुरू कर दी। पहले पंचामृत से (दूध , दही , शहद ,शर्करा और अंत में घी) स्नान करवाया। फिर गंगाजल से स्नान करवाया। पीताम्बर और गहने, फूलों की माला से उनका श्रृंगार किया। चंदन, तुलसी के पत्ते अर्पित किए। फिर भोग लगाया। सासू माँ ने कीर्तन-भजन और आरती की। फिर हम सबने प्रसाद लिया। आश्चर्य की मेरे बच्चे पूरी पूजा तक जगे रहे और दोनों बहुत खुश थे।
हँसी खुशी से ये दिन बीता पर मेरे सुपर हीरो के जन्मदिन का रीटर्न गिफ्ट मुझे अगले दिन मिला जब मेरी सासू माँ ने आकर मेरा हाथ पकड़ कर कहा “बेटा धन्यवाद।” मैंने पूछा” क्यों मम्मी?”
उन्होंने कहा कि मेरे मायके में ऐसे ही जन्माष्टमी मनाते थे पर जब मैं शादी होकर आयी तो देखा इस घर में सुबह ही पूजा कर लेते थे। मैं अपने घर की पूजा बहुत मिस करती थी। बाद में जब मेरे हाथ में घर की बागडोर आयी तब भी मैं बदलाव करने से डरने लगी। कल तुमने मुझे मेरी बचपन वाली खुशी दे दी। जब मैं भी इसी उत्साह से मेरे कान्हा का जन्मदिन मनाती थी। हम दोनो की आँखों में आँसू थे। खुशी के आँसू।