लैंसडौन – एक खूबसूरत सफर (भाग 1)

लैंसडौन – एक खूबसूरत सफर (भाग 1)

अगर आप दिल्ली या उसके आसपास के राज्यों और उनके शहरों में रहते हैं तो आपने जब भी छुट्टिओं में कहीं आसपास जाने क लिए इंटरनेट पर सर्च किया होगा और अगर आप पहाड़ों पर जाने के भी शौक़ीन हैं, तो गूगल ने आपको हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड या फिर कश्मीर के पर्यटन स्थल दिखाए होंगे। तीनों राज्यों के अलग अलग पर्यटन स्थलों की अपनी अपनी अनुपम सुंदरता और विशेषताएं हैं। अब चाहे आप हिममाचल के मनाली जाएं या कश्मीर की हसीन वादिओं में खुद को खो दें। लेह की पांगोंग झील को निहारें या फिर नैनीताल में नैनी झील में नौका विहार करें। हर एक जगह का अपना रास्ता, अपनी कहानी।

ऐसे ही आसपास के पर्यटन स्थलों को ढूंढ़ते हुए मैंने एक नाम कई बार पढ़ा…… लैंसडौन। कभी वहां जाने का मौका नहीं मिल पाया। मैं खुद उत्तराखंड से हूँ, हालाँकि पली बड़ी दिल्ली में, शायद इसीलिए अपने गांव के अलावा भी अपनी पैतृक भूमि को जानने समझने का मन होता। इस्तेफ़ाक़ देखिए की जब मुझे ये मौका मिला तो एक साल से भी कम समय में दो बार वहां हो आयी। 25 अगस्त 2017 हमें मौका मिला लैंसडौन जाने का। मेरे हस्बैंड की ऑफिसियल मीटिंग थी वहां तो मैं और मेरा बेटा भी साथ चल दिए,क्यूंकि परिवार के रहने का भी इंतज़ाम किया गया था।

दिल्ली से लगभग 265km की दुरी पर मेरठ कोटद्वार हाईवे से होते हुए आप लैंसडौन पहुंचते हो। लैंसडौन से सबसे करीब रेलवे स्टेशन है कोटद्वार, जोकि तराई का शहर(फूटहिल) है। लैंसडौन यहाँ से 40km की दुरी पर है। यह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत आता है। इसकी प्रमुखता है इसका भारतीय थल सेना की मशहूर गढ़वाल रेजिमेंट का यहाँ गढ़ होना। जी ये एक आर्मी कन्टोन्मेंट है, और गढ़वाल रेजिमेंट के शूरवीरों की कार्यस्थली भी। लैंसडौन समुंदरतल से 1706  मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चीड़, देवदार और शाहबटुल(ओक) के पेड़ो से घिरा ये शांत पर्यटन स्थल जो सड़क होने के वजह से विकसित तो है लेकिन आर्मी के होने की वजह से अपने ही आप में सुरक्षित और शांत क्षेत्र है। अगर आप कुछ दिन शहर के शोरगुल और चकाचौंध, मोबाइल नेटवर्क की पहुँच से दूर जाना चाहते हैं तो लैंसडौन से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता।

हमने अपने सफर की शुरुआत 25 अगस्त को लगभग 5 बजे की। मेरठ -हरिद्वार/कोठद्वार हाईवे अब बहुत शानदार हो गया है। खुली चौड़ी चार लेन सड़क के बन जाने से सफर का मज़ा दोगुना हो जाता है। मेरठ पर नाश्ता कर हम फिर आगे बढे। गांव खेत खलियानों के नजरों का मज़ा लिया। बिजनोर जिले में थोड़ा परेशानी हुई क्योंकि सड़क खराब थी। लगभग 1 बजे हम कोठद्वार पहुँच गए। ये एक छोटा शहर है जो पहाड़ों के मुहाने पर बसा है। शहर और पहाड़ दोनों की संस्कृति को खुद में समेटे। हम अभी लगभग 8km ही पहाड़ों की ओर बढ़े होंगे की मौसम एक दम से सुहाना हो गया। अभी दुग्गड़ा नाम के गांव पार ही किया था कि बारिश शुरू हो गयी। अब तो सफर का मज़ा और बढ़ गया। क्या नज़ारे थे। मेरे हस्बैंड गाड़ी बड़े ध्यान से और संभल कर चला रहे थे और मैं और मेरा बेटा नदी और पहाड़ों के सुंदर नजारों का मज़ा ले रहे थे।

लगभग 2 बजे हम लैंसडौन से 5km पहले पालकोट में अपने होटल पहुचे। यहाँ एक बात बता दूं कि लैंसडौन में आपको आर्मी का क्षेत्र होने की वजह से होटल नहीं मिलेंगे। सिर्फ गढ़वाल टूरिस्म का एक गेस्ट हाउस है जिसकी बुकिंग बड़ी मुश्किल से मिलती है। बाकी सब रहने के होटल या रिसोर्ट आपको लैंसडौन से करीब 4 या 5km पहले ही मिलेंगे। होटल में पहुँचे हमने लंच किया। फिर मैं और बेटा कुछ आराम करने कमरे में चले गए और हस्बैंड मीटिंग के लिए।

करीब एक घंटे बाद हम लैंसडौन के लिए निकले। जैसे जैसे लैंसडौन पास आता गया हमको फौजी और जवान बच्चे दौड़ की ट्रेनिंग लेते दिखने लगे। लैंसडौन में प्रवेश करते ही बड़े बड़े टैंक आपको आपका स्वागत करते दिख जायेंगे। हम गाड़ी से ही आगे बढ़ते गए। लैंसडौन अंग्रेज़ों द्वारा बसाया गया शहर है। इसका नाम 1887 में भारत में तब वाइसराय रहे लार्ड लैंसडौन के नाम पर रखा गया। इसका वास्तविक नाम कालूडांडा(काला पहाड़) है। अल्मोड़ा से गढ़वाल राइफल की बट्टालायन को यहाँ लाया और तब से अब तक यह गढ़वाल रेजिमेंट का हेडऑफ़िस है।

लैंसडौन एक छोटी सी टाउनशिप की तरह है जिसमे वहां रहने वालों के लिए सब सुविधाएं मोहिया कराई गयी हैं। क्यूंकि ये गांव अंग्रेजों के ज़माने से बसा हुआ है तो यहाँ एक छोटा सा चर्च है सेंट मेर्रिज। एक मानवनिर्मित ताल है भुल्ला लेक और एक टिप एंड टॉप पॉइंट है जहाँ से आप दूर दूर तक गावों और पहाड़ों के सूंदर  खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकते है । हमने गाड़ी को एक जगह खड़ा किया और पहाड़, नज़ारों और साफ़ स्वच्छ हवा के मज़े लेने की सोची। चलते चलते हमे एक जगह सड़क बिलकुल भीगी हुई लगी, जैसे बारिश हुई हो अभी। लेकिन बारिश तो नहीं हुई थी अभी कुछ देर पहले तक। फिर मैंने एक जगह पढ़ा, वहां लिखा था ठंडी सड़क। इस सड़क के बारे में कहा जाता है की अंग्रेज़ों ने ये सड़क अपने लिए ख़ास तौर से काटी थी और इस पर चलने का अधिकार सिर्फ अंग्रेज़ों के पास था। आम जनता के लिए दूसरी ओर से सड़क काटी गयी थी। सच इस सड़क पर चलने का अपना ही मज़ा था।

घुमते फिरते हम गढ़वाल राइफल के म्यूजियम पहुंचे। ये सिर्फ 6 बजे तक खुलता है तो हम भुल्ला लेक न जाकर पहले यहाँ आ गये।  यहाँ आपको गढ़वाल राइफल के इतिहास और इसके एक एक शौर्यवान की गाथा देखने सुनने को मिल जाएगी। गढ़वाल राइफल के जवानों ने न जाने कितनी बार अपनी खुरपी से दुश्मनों के सर काट के भारत माता की भेट चढ़ाएं है। यहाँ पहुंच कर एक बार फिर आप भारतवासी होने और अपनी सेना पर गर्व करेंगे। देखते देखते अँधेरा होने लगा और हम पहाड़ी रास्ते के कारण जल्द ही अपने होटल वापस आ गए।

पहाड़ों पर रात झींगुर की झायें झायें, खुले साफ़ आसमान में टिमटिमाते तारों और जुगनूं की रौशनी के साथ होती है…… और सुबह कोयल की कूक, मुर्गे की बांग, गाय की मओ और बादलों की गड़गड़ाहट से होती है। मैं अभी तक उस रात और सुबह के नज़ारे को नहीं भूल पायी जिसको देख मेरे मुँह से बस वाह निकली थी। आज दूसरे दिन हस्बैंड तो मीटिंग में बिजी रहने वाले थे तो मैंने और बेटे ने आसपास के गांव में ऐसे ही एक वाक लेने की सोची थोड़ा दूर गए भी पर ऊँचे नीचे पहाड़ी रास्तों ने थका दिया। होटल आकर दूसरे परिवारों से बात कर तारकेश्वर महादेव मंदिर जाने का प्लान बना लिया।

तारकेश्वर महादेव मंदिर लैंसडौन से करीब 35km की दूरी पर  एक प्राचीन मंदिर है। सकरी और घूमावदार सड़क होने के कारण आपको रास्ता लम्बा और तकलीफदेह लग सकता है लेकिन यकीन मानिये जैसे ही आप मंदिर के पास आते है और आसपास के नज़ारे, शांत वातावरण देखते हैं, आप सफर की सारी थकान भूल जाते है। करीब 1/२km की उतराई जिसके रास्ते में हज़ारों घंटे और घंटियां लगी हुई है। जब आप मंदिर प्रांगढ़ में पहुंचते है तो आप मोहित हुए बिना नहीं रह पाते।  चारों तरफ से देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा ये प्राचीन मंदिर अपने में ही अनूठा है क्यूंकि यहाँ शिवलिंग की नहीं मूर्ति की पूजा होती है। यहाँ एक त्रिशूल वृक्ष भी है जिसकी सिर्फ तीन शाखाएं है और वो एक त्रिशूल का आकार बनाती है। दूसरे दिन का सफर भी आन्नदमयी रहा।

तीसरे दिन यानि रविवार को सुबह नाश्ता कर हम वापसी के लिए निकल पड़े। रास्ते में मनमोहक मनोरम सौन्दर्य को देख खुद को रोक न पाते तो उसकी याद बनाने के लिए रुक तस्वीर को एक याद की तरह कैद कर लेते। लैंसडौन का ये सफर मेरे लिए कभी न भूलने वाला रहा और मन में यहाँ फिर आने की आस लिए मैंने इसको अलविदा कहा।

yehpoo1311@gmail.com'

Pooja Sharma

Amid being a Mom, a Wife, a Daughter, a Sister I am trying to live my life as a human. As who I am. I love to be myself. As a freelancer blogger, a poet, a story teller I am working with some prominent platforms. I describe my self as jack of all trades, but master of none as I don't wanna bind myself to certain limits, also being a master somewhere might stop my ability to learn.  The 3L Learn, Laugh, Live Mantra is what I follows. To know more, please connect with me through my profile.