बूढ़ी जड़े
पड़ोस की जयंती दीदी ने कहा,”चली जा सुषमा, इतनी अच्छी बहू है तेरी। किस्मत वाली है वरना आजकल कहाँ है ऐसे बेटा बहू।”
सच किस्मत वाली तो हूँ। बाथरूम में फिसल गई थी और कलाई की हड्डी टूट गयी। जैसे ही शिशिर और जिगना को पता चला परेशान हो गए। शिशिर विदेश में था। जिगना ने उसी दिन की फ्लाइट पकड़ी। अब हफ्ते से आफिस की छुट्टी कर के मेरी सेवा कर रही है।अब ज़िद है कि मुझे अपने साथ ले जाएगी।
नीरज के जाने के बाद शिशिर और जिगना हमेशा मेरे लिए परेशान रहते हैं। रोज दो तीन बार फोन करते हैं। बेटा एक बार भूल जाएं पर जिगना लंच टाइम में अपना टिफिन खोलकर पहले मुझे फोन करेगी। क्या खाना बनाया? अभी तक खाया क्यों नहीं? सच पूछो तो उसकी डांट खाए बिना खाना हज़म नहीं होता।
मुझे मजबूरी में हथियार डालने पड़े। कितने दिन बेचारी छुट्टी लेकर बैठती। मुझे उसके साथ दिल्ली जाना पड़ा। हर तरह की सुख सुविधाओं के बावजूद मुझे वहां अच्छा नहीं लगता। अपना भोपाल का घर जहां मैं ब्याह कर आई थी, मेरा घरौंदा जिसे मैंने प्यार से सजाया था, नीरज की यादें इन सबको छोड़कर रहना बहुत मुश्किल था। जैसे ही ठीक हुई बेटे बहू के बार बार रोकने के बावजूद वापस चली आई। पता नहीं, क्यों नहीं समझते? क्यों बूढ़ी जड़ों को उखाड़ने में लगे हैं? इस उम्र में मुश्किल है कहीं और जाकर जड़ें जमानी।
आह! मेरा घर प्यारा घर, वापस आकर मैं बहुत खुश थी। नहीं, दरअसल खुश तो नहीं थी। बेटे बहू की बहुत याद आ रही थी। पर अपने घर में सुकुन था।
कुछ दिनों बाद खबर आई मैं दादी बनने वाली हूँ। जिगना की तबीयत कुछ ज़्यादा ही खराब हो गई थी। मुझे दिल्ली जाना पड़ा। डॉक्टर ने बहू को बेड रेस्ट कहा था तो जिम्मेदारी बढ़ गई थी अब कभी कभी घर की याद आती पर क्या कर सकती थी। यहां रहना मेरी मजबूरी थी।
नियत समय पर एक प्यारी सी गुड़िया ने जन्म लिया। फिर तो मैं ऐसा उसमें रमी कि घर बार भूल गई। अब लगता है, बेचारे दोनों जॉब करते हैं, मैं रहूंगी तो इनको आसानी होगी, बच्चे को भी क्रेच में नहीं रहना पड़ेगा। पर मैं जानती हूं ये सब तो बहाने हैं जैसे घर के प्रति मोह था अब वह गुड़िया के लिए हैं। शिशिर और जिगना मुझे चिड़ाते है, माँ अब बूढ़ी जड़े कैसे टिक रही है?? और मैं हँसकर कहती तुम्हारी बेटी के प्रेम रूपी तरूण लताओं ने मेरी जड़ों को मजबूती दी है उसके मोहपाश में बँधकर मैं नई जमीन में अपनी जड़ें जमा रही हूँ।